105وَكَأَيِّن مِن آيَةٍ فِي السَّماواتِ وَالأَرضِ يَمُرّونَ عَلَيها وَهُم عَنها مُعرِضونَफ़ारूक़ ख़ान & नदवीऔर आसमानों और ज़मीन में (ख़ुदा की क़ुदरत की) कितनी निशानियाँ हैं जिन पर ये लोग (दिन रात) ग़ुज़ारा करते हैं और उससे मुँह फेरे रहते हैं