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Sura 43
Aya 32
32
أَهُم يَقسِمونَ رَحمَتَ رَبِّكَ ۚ نَحنُ قَسَمنا بَينَهُم مَعيشَتَهُم فِي الحَياةِ الدُّنيا ۚ وَرَفَعنا بَعضَهُم فَوقَ بَعضٍ دَرَجاتٍ لِيَتَّخِذَ بَعضُهُم بَعضًا سُخرِيًّا ۗ وَرَحمَتُ رَبِّكَ خَيرٌ مِمّا يَجمَعونَ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

ये लोग तुम्हारे परवरदिगार की रहमत को (अपने तौर पर) बाँटते हैं हमने तो इनके दरमियान उनकी रोज़ी दुनयावी ज़िन्दगी में बाँट ही दी है और एक के दूसरे पर दर्जे बुलन्द किए हैं ताकि इनमें का एक दूसरे से ख़िदमत ले और जो माल (मतआ) ये लोग जमा करते फिरते हैं ख़ुदा की रहमत (पैग़म्बर) इससे कहीं बेहतर है