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Sura 3
Aya 78
78
وَإِنَّ مِنهُم لَفَريقًا يَلوونَ أَلسِنَتَهُم بِالكِتابِ لِتَحسَبوهُ مِنَ الكِتابِ وَما هُوَ مِنَ الكِتابِ وَيَقولونَ هُوَ مِن عِندِ اللَّهِ وَما هُوَ مِن عِندِ اللَّهِ وَيَقولونَ عَلَى اللَّهِ الكَذِبَ وَهُم يَعلَمونَ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

और अहले किताब से बाज़ ऐसे ज़रूर हैं कि किताब (तौरेत) में अपनी ज़बाने मरोड़ मरोड़ के (कुछ का कुछ) पढ़ जाते हैं ताकि तुम ये समझो कि ये किताब का जुज़ है हालॉकि वह किताब का जुज़ नहीं और कहते हैं कि ये (जो हम पढ़ते हैं) ख़ुदा के यहॉ से (उतरा) है हालॉकि वह ख़ुदा के यहॉ से नहीं (उतरा) और जानबूझ कर ख़ुदा पर झूठ (तूफ़ान) जोड़ते हैं