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Sura 3
Aya 77
77
إِنَّ الَّذينَ يَشتَرونَ بِعَهدِ اللَّهِ وَأَيمانِهِم ثَمَنًا قَليلًا أُولٰئِكَ لا خَلاقَ لَهُم فِي الآخِرَةِ وَلا يُكَلِّمُهُمُ اللَّهُ وَلا يَنظُرُ إِلَيهِم يَومَ القِيامَةِ وَلا يُزَكّيهِم وَلَهُم عَذابٌ أَليمٌ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

बेशक जो लोग अपने एहद और (क़समे) जो ख़ुदा (से किया था उसके) बदले थोड़ा (दुनयावी) मुआवेज़ा ले लेते हैं उन ही लोगों के वास्ते आख़िरत में कुछ हिस्सा नहीं और क़यामत के दिन ख़ुदा उनसे बात तक तो करेगा नहीं ओर उनकी तरफ़ नज़र (रहमत) ही करेगा और न उनको (गुनाहों की गन्दगी से) पाक करेगा और उनके लिये दर्दनाम अज़ाब है