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Sura 12
Aya 68
68
وَلَمّا دَخَلوا مِن حَيثُ أَمَرَهُم أَبوهُم ما كانَ يُغني عَنهُم مِنَ اللَّهِ مِن شَيءٍ إِلّا حاجَةً في نَفسِ يَعقوبَ قَضاها ۚ وَإِنَّهُ لَذو عِلمٍ لِما عَلَّمناهُ وَلٰكِنَّ أَكثَرَ النّاسِ لا يَعلَمونَ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

और जब ये सब भाई जिस तरह उनके वालिद ने हुक्म दिया था उसी तरह (मिस्र में) दाख़िल हुए मगर जो हुक्म ख़ुदा की तरफ से आने को था उसे याक़ूब कुछ भी टाल नहीं सकते थे मगर (हाँ) याक़ूब के दिल में एक तमन्ना थी जिसे उन्होंने भी युं पूरा कर लिया क्योंकि इसमे तो शक़ नहीं कि उसे चूंकि हमने तालीम दी थी साहिबे इल्म ज़रुर था मगर बहुतेरे लोग (उससे भी) वाक़िफ नहीं