122۞ وَما كانَ المُؤمِنونَ لِيَنفِروا كافَّةً ۚ فَلَولا نَفَرَ مِن كُلِّ فِرقَةٍ مِنهُم طائِفَةٌ لِيَتَفَقَّهوا فِي الدّينِ وَلِيُنذِروا قَومَهُم إِذا رَجَعوا إِلَيهِم لَعَلَّهُم يَحذَرونَफ़ारूक़ ख़ान & नदवीऔर ये भी मुनासिब नहीं कि मोमिननि कुल के कुल (अपने घरों में) निकल खड़े हों उनमें से हर गिरोह की एक जमाअत (अपने घरों से) क्यों नहीं निकलती ताकि इल्मे दीन हासिल करे और जब अपनी क़ौम की तरफ पलट के आवे तो उनको (अज्र व आख़िरत से) डराए ताकि ये लोग डरें