يا أَيُّهَا النَّبِيُّ إِذا طَلَّقتُمُ النِّساءَ فَطَلِّقوهُنَّ لِعِدَّتِهِنَّ وَأَحصُوا العِدَّةَ ۖ وَاتَّقُوا اللَّهَ رَبَّكُم ۖ لا تُخرِجوهُنَّ مِن بُيوتِهِنَّ وَلا يَخرُجنَ إِلّا أَن يَأتينَ بِفاحِشَةٍ مُبَيِّنَةٍ ۚ وَتِلكَ حُدودُ اللَّهِ ۚ وَمَن يَتَعَدَّ حُدودَ اللَّهِ فَقَد ظَلَمَ نَفسَهُ ۚ لا تَدري لَعَلَّ اللَّهَ يُحدِثُ بَعدَ ذٰلِكَ أَمرًا
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
ऐ रसूल (मुसलमानों से कह दो) जब तुम अपनी बीवियों को तलाक़ दो तो उनकी इद्दत (पाकी) के वक्त तलाक़ दो और इद्दा का शुमार रखो और अपने परवरदिगार ख़ुदा से डरो और (इद्दे के अन्दर) उनके घर से उन्हें न निकालो और वह ख़ुद भी घर से न निकलें मगर जब वह कोई सरीही बेहयाई का काम कर बैठें (तो निकाल देने में मुज़ायका नहीं) और ये ख़ुदा की (मुक़र्रर की हुई) हदें हैं और जो ख़ुदा की हदों से तजाउज़ करेगा तो उसने अपने ऊपर आप ज़ुल्म किया तो तू नहीं जानता यायद ख़ुदा उसके बाद कोई बात पैदा करे (जिससे मर्द पछताए और मेल हो जाए)