43وَكَيفَ يُحَكِّمونَكَ وَعِندَهُمُ التَّوراةُ فيها حُكمُ اللَّهِ ثُمَّ يَتَوَلَّونَ مِن بَعدِ ذٰلِكَ ۚ وَما أُولٰئِكَ بِالمُؤمِنينَफ़ारूक़ ख़ान & नदवीऔर जब ख़ुद उनके पास तौरेत है और उसमें ख़ुदा का हुक्म (मौजूद) है तो फिर तुम्हारे पास फैसला कराने को क्यों आते हैं और (लुत्फ़ तो ये है कि) इसके बाद फिर (तुम्हारे हुक्म से) फिर जाते हैं ओर सच तो यह है कि यह लोग ईमानदार ही नहीं हैं