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Sura 41
Aya 50
50
وَلَئِن أَذَقناهُ رَحمَةً مِنّا مِن بَعدِ ضَرّاءَ مَسَّتهُ لَيَقولَنَّ هٰذا لي وَما أَظُنُّ السّاعَةَ قائِمَةً وَلَئِن رُجِعتُ إِلىٰ رَبّي إِنَّ لي عِندَهُ لَلحُسنىٰ ۚ فَلَنُنَبِّئَنَّ الَّذينَ كَفَروا بِما عَمِلوا وَلَنُذيقَنَّهُم مِن عَذابٍ غَليظٍ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

और अगर उसको कोई तकलीफ पहुँच जाने के बाद हम उसको अपनी रहमत का मज़ा चखाएँ तो यक़ीनी कहने लगता है कि ये तो मेरे लिए ही है और मैं नहीं ख़याल करता कि कभी क़यामत बरपा होगी और अगर (क़यामत हो भी और) मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाया भी जाऊँ तो भी मेरे लिए यक़ीनन उसके यहाँ भलाई ही तो है जो आमाल करते रहे हम उनको (क़यामत में) ज़रूर बता देंगें और उनको सख्त अज़ाब का मज़ा चख़ाएगें