67وَلَو نَشاءُ لَمَسَخناهُم عَلىٰ مَكانَتِهِم فَمَا استَطاعوا مُضِيًّا وَلا يَرجِعونَफ़ारूक़ ख़ान & नदवीऔर अगर हम चाहे तो जहाँ ये हैं (वहीं) उनकी सूरतें बदल (करके) (पत्थर मिट्टी बना) दें फिर न तो उनमें आगे जाने का क़ाबू रहे और न (घर) लौट सकें