67وَلَو نَشاءُ لَمَسَخناهُم عَلىٰ مَكانَتِهِم فَمَا استَطاعوا مُضِيًّا وَلا يَرجِعونَफ़ारूक़ ख़ान & अहमदयदि हम चाहें तो उनकी जगह पर ही उनके रूप बिगाड़कर रख दें क्योंकि वे सत्य की ओर न चल सके और वे (गुमराही से) बाज़ नहीं आते।