52فَإِنَّكَ لا تُسمِعُ المَوتىٰ وَلا تُسمِعُ الصُّمَّ الدُّعاءَ إِذا وَلَّوا مُدبِرينَफ़ारूक़ ख़ान & नदवी(ऐ रसूल) तुम तो (अपनी) आवाज़ न मुर्दो ही को सुना सकते हो और न बहरों को सुना सकते हो (ख़ुसूसन) जब वह पीठ फेरकर चले जाएँ