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Sura 12
Aya 31
31
فَلَمّا سَمِعَت بِمَكرِهِنَّ أَرسَلَت إِلَيهِنَّ وَأَعتَدَت لَهُنَّ مُتَّكَأً وَآتَت كُلَّ واحِدَةٍ مِنهُنَّ سِكّينًا وَقالَتِ اخرُج عَلَيهِنَّ ۖ فَلَمّا رَأَينَهُ أَكبَرنَهُ وَقَطَّعنَ أَيدِيَهُنَّ وَقُلنَ حاشَ لِلَّهِ ما هٰذا بَشَرًا إِن هٰذا إِلّا مَلَكٌ كَريمٌ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

तो जब ज़ुलेख़ा ने उनके ताने सुने तो उस ने उन औरतों को बुला भेजा और उनके लिए एक मजलिस आरास्ता की और उसमें से हर एक के हाथ में एक छुरी और एक (नारंगी) दी (और कह दिया कि जब तुम्हारे सामने आए तो काट के एक फ़ाक उसको दे देना) और यूसुफ़ से कहा कि अब इनके सामने से निकल तो जाओ तो जब उन औरतों ने उसे देखा तो उसके बड़ा हसीन पाया तो सब के सब ने (बे खुदी में) अपने अपने हाथ काट डाले और कहने लगी हाय अल्लाह ये आदमी नहीं है ये तो हो न हो बस एक मुअज़िज़ (इज्ज़त वाला) फ़रिश्ता है