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Sura 5
Aya 49
49
وَأَنِ احكُم بَينَهُم بِما أَنزَلَ اللَّهُ وَلا تَتَّبِع أَهواءَهُم وَاحذَرهُم أَن يَفتِنوكَ عَن بَعضِ ما أَنزَلَ اللَّهُ إِلَيكَ ۖ فَإِن تَوَلَّوا فَاعلَم أَنَّما يُريدُ اللَّهُ أَن يُصيبَهُم بِبَعضِ ذُنوبِهِم ۗ وَإِنَّ كَثيرًا مِنَ النّاسِ لَفاسِقونَ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

तब (उस वक्त) ज़िन बातों में तुम इख्तेलाफ़ करते वह तुम्हें बता देगा और (ऐ रसूल) हम फिर कहते हैं कि जो एहकाम ख़ुदा नाज़िल किए हैं तुम उसके मुताबिक़ फैसला करो और उनकी (बेजा) ख्वाहिशे नफ़सियानी की पैरवी न करो (बल्कि) तुम उनसे बचे रहो (ऐसा न हो) कि किसी हुक्म से जो ख़ुदा ने तुम पर नाज़िल किया है तुमको ये लोग भटका दें फिर अगर ये लोग तुम्हारे हुक्म से मुंह मोड़ें तो समझ लो कि (गोया) ख़ुदा ही की मरज़ी है कि उनके बाज़ गुनाहों की वजह से उन्हें मुसीबत में फॅसा दे और इसमें तो शक ही नहीं कि बहुतेरे लोग बदचलन हैं