29إِنّي أُريدُ أَن تَبوءَ بِإِثمي وَإِثمِكَ فَتَكونَ مِن أَصحابِ النّارِ ۚ وَذٰلِكَ جَزاءُ الظّالِمينَफ़ारूक़ ख़ान & नदवीमैं तो ज़रूर ये चाहता हूं कि मेरे गुनाह और तेरे गुनाह दोनों तेरे सर हो जॉए तो तू (अच्छा ख़ासा) जहन्नुमी बन जाए और ज़ालिमों की तो यही सज़ा है