29إِنّي أُريدُ أَن تَبوءَ بِإِثمي وَإِثمِكَ فَتَكونَ مِن أَصحابِ النّارِ ۚ وَذٰلِكَ جَزاءُ الظّالِمينَफ़ारूक़ ख़ान & अहमद"मैं तो चाहता हूँ कि मेरा गुनाह और अपना गुनाह तू ही अपने सिर ले ले, फिर आग (जहन्नम) में पड़नेवालों में से एक हो जाए, और वही अत्याचारियों का बदला है।"