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Sura 49
Aya 11
11
يا أَيُّهَا الَّذينَ آمَنوا لا يَسخَر قَومٌ مِن قَومٍ عَسىٰ أَن يَكونوا خَيرًا مِنهُم وَلا نِساءٌ مِن نِساءٍ عَسىٰ أَن يَكُنَّ خَيرًا مِنهُنَّ ۖ وَلا تَلمِزوا أَنفُسَكُم وَلا تَنابَزوا بِالأَلقابِ ۖ بِئسَ الِاسمُ الفُسوقُ بَعدَ الإيمانِ ۚ وَمَن لَم يَتُب فَأُولٰئِكَ هُمُ الظّالِمونَ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

ऐ ईमानदारों (तुम किसी क़ौम का) कोई मर्द ( दूसरी क़ौम के मर्दों की हँसी न उड़ाये मुमकिन है कि वह लोग (ख़ुदा के नज़दीक) उनसे अच्छे हों और न औरते औरतों से (तमसख़ुर करें) क्या अजब है कि वह उनसे अच्छी हों और तुम आपस में एक दूसरे को मिलने न दो न एक दूसरे का बुरा नाम धरो ईमान लाने के बाद बदकारी (का) नाम ही बुरा है और जो लोग बाज़ न आएँ तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं