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Sura 42
Aya 52
52
وَكَذٰلِكَ أَوحَينا إِلَيكَ روحًا مِن أَمرِنا ۚ ما كُنتَ تَدري مَا الكِتابُ وَلَا الإيمانُ وَلٰكِن جَعَلناهُ نورًا نَهدي بِهِ مَن نَشاءُ مِن عِبادِنا ۚ وَإِنَّكَ لَتَهدي إِلىٰ صِراطٍ مُستَقيمٍ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

और इसी तरह हमने अपने हुक्म को रूह (क़ुरान) तुम्हारी तरफ 'वही' के ज़रिए से भेजे तो तुम न किताब ही को जानते थे कि क्या है और न ईमान को मगर इस (क़ुरान) को एक नूर बनाया है कि इससे हम अपने बन्दों में से जिसकी चाहते हैं हिदायत करते हैं और इसमें शक़ नहीं कि तुम (ऐ रसूल) सीधा ही रास्ता दिखाते हो