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Sura 3
Aya 81
81
وَإِذ أَخَذَ اللَّهُ ميثاقَ النَّبِيّينَ لَما آتَيتُكُم مِن كِتابٍ وَحِكمَةٍ ثُمَّ جاءَكُم رَسولٌ مُصَدِّقٌ لِما مَعَكُم لَتُؤمِنُنَّ بِهِ وَلَتَنصُرُنَّهُ ۚ قالَ أَأَقرَرتُم وَأَخَذتُم عَلىٰ ذٰلِكُم إِصري ۖ قالوا أَقرَرنا ۚ قالَ فَاشهَدوا وَأَنا مَعَكُم مِنَ الشّاهِدينَ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

(और ऐ रसूल वह वक्त भी याद दिलाओ) जब ख़ुदा ने पैग़म्बरों से इक़रार लिया कि हम तुमको जो कुछ किताब और हिकमत (वगैरह) दे उसके बाद तुम्हारे पास कोई रसूल आए और जो किताब तुम्हारे पास उसकी तसदीक़ करे तो (देखो) तुम ज़रूर उस पर ईमान लाना, और ज़रूर उसकी मदद करना (और) ख़ुदा ने फ़रमाया क्या तुमने इक़रार लिया तुमने मेरे (एहद का) बोझ उठा लिया सबने अर्ज़ की हमने इक़रार किया इरशाद हुआ (अच्छा) तो आज के क़ौल व (क़रार के) आपस में एक दूसरे के गवाह रहना