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Sura 3
Aya 159
159
فَبِما رَحمَةٍ مِنَ اللَّهِ لِنتَ لَهُم ۖ وَلَو كُنتَ فَظًّا غَليظَ القَلبِ لَانفَضّوا مِن حَولِكَ ۖ فَاعفُ عَنهُم وَاستَغفِر لَهُم وَشاوِرهُم فِي الأَمرِ ۖ فَإِذا عَزَمتَ فَتَوَكَّل عَلَى اللَّهِ ۚ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ المُتَوَكِّلينَ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

(तुमने तो अपनी दयालुता से उन्हें क्षमा कर दिया) तो अल्लाह की ओर से ही बड़ी दयालुता है जिसके कारण तुम उनके लिए नर्म रहे हो, यदि कहीं तुम स्वभाव के क्रूर और कठोर हृदय होते तो ये सब तुम्हारे पास से छँट जाते। अतः उन्हें क्षमा कर दो और उनके लिए क्षमा की प्रार्थना करो। और मामलों में उनसे परामर्श कर लिया करो। फिर जब तुम्हारे संकल्प किसी सम्मति पर सुदृढ़ हो जाएँ तो अल्लाह पर भरोसा करो। निस्संदेह अल्लाह को वे लोग प्रिय है जो उसपर भरोसा करते है