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Sura 27
Aya 40
40
قالَ الَّذي عِندَهُ عِلمٌ مِنَ الكِتابِ أَنا آتيكَ بِهِ قَبلَ أَن يَرتَدَّ إِلَيكَ طَرفُكَ ۚ فَلَمّا رَآهُ مُستَقِرًّا عِندَهُ قالَ هٰذا مِن فَضلِ رَبّي لِيَبلُوَني أَأَشكُرُ أَم أَكفُرُ ۖ وَمَن شَكَرَ فَإِنَّما يَشكُرُ لِنَفسِهِ ۖ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ رَبّي غَنِيٌّ كَريمٌ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

इस पर अभी सुलेमान कुछ कहने न पाए थे कि वह शख्स (आसिफ़ बिन बरख़िया) जिसके पास किताबे (ख़ुदा) का किस कदर इल्म था बोला कि मै आप की पलक झपकने से पहले तख्त को आप के पास हाज़िर किए देता हूँ (बस इतने ही में आ गया) तो जब सुलेमान ने उसे अपने पास मौजूद पाया तो कहने लगे ये महज़ मेरे परवरदिगार का फज़ल व करम है ताकि वह मेरा इम्तेहान ले कि मै उसका शुक्र करता हूँ या नाशुक्री करता हूँ और जो कोई शुक्र करता है वह अपनी ही भलाई के लिए शुक्र करता है और जो शख्स ना शुक्री करता है तो (याद रखिए) मेरा परवरदिगार यक़ीनन बेपरवा और सख़ी है