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Sura 2
Aya 232
232
وَإِذا طَلَّقتُمُ النِّساءَ فَبَلَغنَ أَجَلَهُنَّ فَلا تَعضُلوهُنَّ أَن يَنكِحنَ أَزواجَهُنَّ إِذا تَراضَوا بَينَهُم بِالمَعروفِ ۗ ذٰلِكَ يوعَظُ بِهِ مَن كانَ مِنكُم يُؤمِنُ بِاللَّهِ وَاليَومِ الآخِرِ ۗ ذٰلِكُم أَزكىٰ لَكُم وَأَطهَرُ ۗ وَاللَّهُ يَعلَمُ وَأَنتُم لا تَعلَمونَ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और जब तुम स्त्रियों को तलाक़ दे दो और वे अपनी निर्धारित अवधि (इद्दत) को पहुँच जाएँ, तो उन्हें अपने होनेवाले दूसरे पतियों से विवाह करने से न रोको, जबकि वे सामान्य नियम के अनुसार परस्पर रज़ामन्दी से मामला तय करें। यह नसीहत तुममें से उसको की जा रही है जो अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखता है। यही तुम्हारे लिए ज़्यादा बरकतवाला और सुथरा तरीक़ा है। और अल्लाह जानता है, तुम नहीं जानते