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Sura 12
Aya 100
100
وَرَفَعَ أَبَوَيهِ عَلَى العَرشِ وَخَرّوا لَهُ سُجَّدًا ۖ وَقالَ يا أَبَتِ هٰذا تَأويلُ رُؤيايَ مِن قَبلُ قَد جَعَلَها رَبّي حَقًّا ۖ وَقَد أَحسَنَ بي إِذ أَخرَجَني مِنَ السِّجنِ وَجاءَ بِكُم مِنَ البَدوِ مِن بَعدِ أَن نَزَغَ الشَّيطانُ بَيني وَبَينَ إِخوَتي ۚ إِنَّ رَبّي لَطيفٌ لِما يَشاءُ ۚ إِنَّهُ هُوَ العَليمُ الحَكيمُ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उसने अपने माँ-बाप को ऊँची जगह सिंहासन पर बिठाया और सब उसके आगे सजदे मे गिर पड़े। इस अवसर पर उसने कहा, "ऐ मेरे बाप! यह मेरे विगत स्वप्न का साकार रूप है। इसे मेरे रब ने सच बना दिया। और उसने मुझपर उपकार किया जब मुझे क़ैदख़ाने से निकाला और आप भाइयों के बीच फ़साद डलवा दिया था। निस्संदेह मेरा रब जो चाहता है उसके लिए सूक्ष्म उपाय करता है। वास्तव में वही सर्वज्ञ, अत्यन्त तत्वदर्शी है