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Sura 10
Aya 24
24
إِنَّما مَثَلُ الحَياةِ الدُّنيا كَماءٍ أَنزَلناهُ مِنَ السَّماءِ فَاختَلَطَ بِهِ نَباتُ الأَرضِ مِمّا يَأكُلُ النّاسُ وَالأَنعامُ حَتّىٰ إِذا أَخَذَتِ الأَرضُ زُخرُفَها وَازَّيَّنَت وَظَنَّ أَهلُها أَنَّهُم قادِرونَ عَلَيها أَتاها أَمرُنا لَيلًا أَو نَهارًا فَجَعَلناها حَصيدًا كَأَن لَم تَغنَ بِالأَمسِ ۚ كَذٰلِكَ نُفَصِّلُ الآياتِ لِقَومٍ يَتَفَكَّرونَ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

सांसारिक जीवन की उपमा तो बस ऐसी है जैसे हमने आकाश से पानी बरसाया, तो उसके कारण धरती से उगनेवाली चीज़े, जिनको मनुष्य और चौपाये सभी खाते है, घनी हो गई, यहाँ तक कि धरती ने अपना शृंगार कर लिया और सँवर गई और उसके मालिक समझने लगे कि उन्हें उसपर पूरा अधिकार प्राप्त है कि रात या दिन में हमारा आदेश आ पहुँचा। फिर हमने उसे कटी फ़सल की तरह कर दिया, मानो कल वहाँ कोई आबादी ही न थी। इसी तरह हम उन लोगों के लिए खोल-खोलकर निशानियाँ बयान करते है, जो सोच-विचार से काम लेना चाहें