122۞ وَما كانَ المُؤمِنونَ لِيَنفِروا كافَّةً ۚ فَلَولا نَفَرَ مِن كُلِّ فِرقَةٍ مِنهُم طائِفَةٌ لِيَتَفَقَّهوا فِي الدّينِ وَلِيُنذِروا قَومَهُم إِذا رَجَعوا إِلَيهِم لَعَلَّهُم يَحذَرونَफ़ारूक़ ख़ान & अहमदयह तो नहीं कि ईमानवाले सब के सब निकल खड़े हों, फिर ऐसा क्यों नहीं हुआ कि उनके हर गिरोह में से कुछ लोग निकलते, ताकि वे धर्म में समझ प्राप्ति करते और ताकि वे अपने लोगों को सचेत करते, जब वे उनकी ओर लौटते, ताकि वे (बुरे कर्मों से) बचते?