1هَل أَتىٰ عَلَى الإِنسانِ حينٌ مِنَ الدَّهرِ لَم يَكُن شَيئًا مَذكورًاफ़ारूक़ ख़ान & नदवीबेशक इन्सान पर एक ऐसा वक्त अा चुका है कि वह कोई चीज़ क़ाबिले ज़िक्र न था