قَدِ افتَرَينا عَلَى اللَّهِ كَذِبًا إِن عُدنا في مِلَّتِكُم بَعدَ إِذ نَجّانَا اللَّهُ مِنها ۚ وَما يَكونُ لَنا أَن نَعودَ فيها إِلّا أَن يَشاءَ اللَّهُ رَبُّنا ۚ وَسِعَ رَبُّنا كُلَّ شَيءٍ عِلمًا ۚ عَلَى اللَّهِ تَوَكَّلنا ۚ رَبَّنَا افتَح بَينَنا وَبَينَ قَومِنا بِالحَقِّ وَأَنتَ خَيرُ الفاتِحينَ
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
हम अगरचे तुम्हारे मज़हब से नफरत ही रखते हों (तब भी लौट जाएं माज़अल्लाह) जब तुम्हारे बातिल दीन से ख़ुदा ने मुझे नजात दी उसके बाद भी अब अगर हम तुम्हारे मज़हब मे लौट जाएं तब हमने ख़ुदा पर बड़ा झूठा बोहतान बॉधा (ना) और हमारे वास्ते तो किसी तरह जायज़ नहीं कि हम तुम्हारे मज़हब की तरफ लौट जाएँ मगर हाँ जब मेरा परवरदिगार अल्लाह चाहे तो हमारा परवरदिगार तो (अपने) इल्म से तमाम (आलम की) चीज़ों को घेरे हुए है हमने तो ख़ुदा ही पर भरोसा कर लिया ऐ हमारे परवरदिगार तू ही हमारे और हमारी क़ौम के दरमियान ठीक ठीक फैसला कर दे और तू सबसे बेहतर फ़ैसला करने वाला है