يا أَيُّهَا الَّذينَ آمَنوا لا تَتَّخِذوا عَدُوّي وَعَدُوَّكُم أَولِياءَ تُلقونَ إِلَيهِم بِالمَوَدَّةِ وَقَد كَفَروا بِما جاءَكُم مِنَ الحَقِّ يُخرِجونَ الرَّسولَ وَإِيّاكُم ۙ أَن تُؤمِنوا بِاللَّهِ رَبِّكُم إِن كُنتُم خَرَجتُم جِهادًا في سَبيلي وَابتِغاءَ مَرضاتي ۚ تُسِرّونَ إِلَيهِم بِالمَوَدَّةِ وَأَنا أَعلَمُ بِما أَخفَيتُم وَما أَعلَنتُم ۚ وَمَن يَفعَلهُ مِنكُم فَقَد ضَلَّ سَواءَ السَّبيلِ
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
ऐ ईमानदारों अगर तुम मेरी राह में जेहाद करने और मेरी ख़ुशनूदी की तमन्ना में (घर से) निकलते हो तो मेरे और अपने दुशमनों को दोस्त न बनाओ तुम उनके पास दोस्ती का पैग़ाम भेजते हो और जो दीन हक़ तुम्हारे पास आया है उससे वह लोग इनकार करते हैं वह लोग रसूल को और तुमको इस बात पर (घर से) निकालते हैं कि तुम अपने परवरदिगार ख़ुदा पर ईमान ले आए हो (और) तुम हो कि उनके पास छुप छुप के दोस्ती का पैग़ाम भेजते हो हालॉकि तुम कुछ भी छुपा कर या बिल एलान करते हो मैं उससे ख़ूब वाक़िफ़ हूँ और तुममें से जो शख़्श ऐसा करे तो वह सीधी राह से यक़ीनन भटक गया