يا أَيُّهَا الَّذينَ آمَنوا لا تَقتُلُوا الصَّيدَ وَأَنتُم حُرُمٌ ۚ وَمَن قَتَلَهُ مِنكُم مُتَعَمِّدًا فَجَزاءٌ مِثلُ ما قَتَلَ مِنَ النَّعَمِ يَحكُمُ بِهِ ذَوا عَدلٍ مِنكُم هَديًا بالِغَ الكَعبَةِ أَو كَفّارَةٌ طَعامُ مَساكينَ أَو عَدلُ ذٰلِكَ صِيامًا لِيَذوقَ وَبالَ أَمرِهِ ۗ عَفَا اللَّهُ عَمّا سَلَفَ ۚ وَمَن عادَ فَيَنتَقِمُ اللَّهُ مِنهُ ۗ وَاللَّهُ عَزيزٌ ذُو انتِقامٍ
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
(ऐ ईमानदारों जब तुम हालते एहराम में हो तो शिकार न मारो और तुममें से जो कोई जान बूझ कर शिकार मारेगा तो जिस (जानवर) को मारा है चौपायों में से उसका मसल तुममें से जो दो मुन्सिफ आदमी तजवीज़ कर दें उसका बदला (देना) होगा (और) काबा तक पहुँचा कर कुर्बानी की जाए या (उसका) जुर्माना (उसकी क़ीमत से) मोहताजों को खाना खिलाना या उसके बराबर रोज़े रखना (यह जुर्माना इसलिए है) ताकि अपने किए की सज़ा का मज़ा चखो जो हो चुका उससे तो ख़ुदा ने दरग़ुज़र की और जो फिर ऐसी हरकत करेगा तो ख़ुदा उसकी सज़ा देगा और ख़ुदा ज़बरदस्त बदला लेने वाला है