يا أَيُّهَا الَّذينَ آمَنوا شَهادَةُ بَينِكُم إِذا حَضَرَ أَحَدَكُمُ المَوتُ حينَ الوَصِيَّةِ اثنانِ ذَوا عَدلٍ مِنكُم أَو آخَرانِ مِن غَيرِكُم إِن أَنتُم ضَرَبتُم فِي الأَرضِ فَأَصابَتكُم مُصيبَةُ المَوتِ ۚ تَحبِسونَهُما مِن بَعدِ الصَّلاةِ فَيُقسِمانِ بِاللَّهِ إِنِ ارتَبتُم لا نَشتَري بِهِ ثَمَنًا وَلَو كانَ ذا قُربىٰ ۙ وَلا نَكتُمُ شَهادَةَ اللَّهِ إِنّا إِذًا لَمِنَ الآثِمينَ
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
ऐ ईमान वालों जब तुममें से किसी (के सर) पर मौत खड़ी हो तो वसीयत के वक्त तुम (मोमिन) में से दो आदिलों की गवाही होनी ज़रुरी है और जब तुम इत्तेफाक़न कहीं का सफर करो और (सफर ही में) तुमको मौत की मुसीबत का सामना हो तो (भी) दो गवाह ग़ैर (मोमिन) सही (और) अगर तुम्हें शक़ हो तो उन दोनों को नमाज़ के बाद रोक लो फिर वह दोनों ख़ुदा की क़सम खाएँ कि हम इस (गवाही) के (ऐवज़ कुछ दाम नहीं लेंगे अगरचे हम जिसकी गवाही देते हैं हमारा अज़ीज़ ही क्यों न) हो और हम खुदा लगती गवाही न छुपाएँगे अगर ऐसा करें तो हम बेशक गुनाहगार हैं