هُمُ الَّذينَ كَفَروا وَصَدّوكُم عَنِ المَسجِدِ الحَرامِ وَالهَديَ مَعكوفًا أَن يَبلُغَ مَحِلَّهُ ۚ وَلَولا رِجالٌ مُؤمِنونَ وَنِساءٌ مُؤمِناتٌ لَم تَعلَموهُم أَن تَطَئوهُم فَتُصيبَكُم مِنهُم مَعَرَّةٌ بِغَيرِ عِلمٍ ۖ لِيُدخِلَ اللَّهُ في رَحمَتِهِ مَن يَشاءُ ۚ لَو تَزَيَّلوا لَعَذَّبنَا الَّذينَ كَفَروا مِنهُم عَذابًا أَليمًا
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
ये वही लोग तो हैं जिन्होने कुफ़्र किया और तुमको मस्जिदुल हराम (में जाने) से रोका और क़ुरबानी के जानवरों को भी (न आने दिया) कि वह अपनी (मुक़र्रर) जगह (में) पहुँचने से रूके रहे और अगर कुछ ऐसे ईमानदार मर्द और ईमानदार औरतें न होती जिनसे तुम वाक़िफ न थे कि तुम उनको (लड़ाई में कुफ्फ़ार के साथ) पामाल कर डालते पस तुमको उनकी तरफ से बेख़बरी में नुकसान पहँच जाता (तो उसी वक्त तुमको फतेह हुई मगर ताख़ीर) इसलिए (हुई) कि ख़ुदा जिसे चाहे अपनी रहमत में दाख़िल करे और अगर वह (ईमानदार कुफ्फ़ार से) अलग हो जाते तो उनमें से जो लोग काफ़िर थे हम उन्हें दर्दनाक अज़ाब की ज़रूर सज़ा देते