66هَل يَنظُرونَ إِلَّا السّاعَةَ أَن تَأتِيَهُم بَغتَةً وَهُم لا يَشعُرونَफ़ारूक़ ख़ान & अहमदक्या वे बस उस (क़ियामत की) घड़ी की प्रतीक्षा कर रहे है कि वह सहसा उनपर आ पड़े और उन्हें ख़बर भी न हो