65فَلا وَرَبِّكَ لا يُؤمِنونَ حَتّىٰ يُحَكِّموكَ فيما شَجَرَ بَينَهُم ثُمَّ لا يَجِدوا في أَنفُسِهِم حَرَجًا مِمّا قَضَيتَ وَيُسَلِّموا تَسليمًاफ़ारूक़ ख़ान & नदवीपस (ऐ रसूल) तुम्हारे परवरदिगार की क़सम ये लोग सच्चे मोमिन न होंगे तावक्ते क़ि अपने बाहमी झगड़ों में तुमको अपना हाकिम (न) बनाएं फिर (यही नहीं बल्कि) जो कुछ तुम फैसला करो उससे किसी तरह दिलतंग भी न हों बल्कि ख़ुशी ख़ुशी उसको मान लें