56أَن تَقولَ نَفسٌ يا حَسرَتا عَلىٰ ما فَرَّطتُ في جَنبِ اللَّهِ وَإِن كُنتُ لَمِنَ السّاخِرينَफ़ारूक़ ख़ान & अहमदकहीं ऐसा न हो कि कोई व्यक्ति कहने लगे, "हाय, अफ़सोस उसपर! जो कोताही अल्लाह के हक़ में मैंने की। और मैं तो परिहास करनेवालों मं ही सम्मिलित रहा।"