لَيسَ عَلَى الأَعمىٰ حَرَجٌ وَلا عَلَى الأَعرَجِ حَرَجٌ وَلا عَلَى المَريضِ حَرَجٌ وَلا عَلىٰ أَنفُسِكُم أَن تَأكُلوا مِن بُيوتِكُم أَو بُيوتِ آبائِكُم أَو بُيوتِ أُمَّهاتِكُم أَو بُيوتِ إِخوانِكُم أَو بُيوتِ أَخَواتِكُم أَو بُيوتِ أَعمامِكُم أَو بُيوتِ عَمّاتِكُم أَو بُيوتِ أَخوالِكُم أَو بُيوتِ خالاتِكُم أَو ما مَلَكتُم مَفاتِحَهُ أَو صَديقِكُم ۚ لَيسَ عَلَيكُم جُناحٌ أَن تَأكُلوا جَميعًا أَو أَشتاتًا ۚ فَإِذا دَخَلتُم بُيوتًا فَسَلِّموا عَلىٰ أَنفُسِكُم تَحِيَّةً مِن عِندِ اللَّهِ مُبارَكَةً طَيِّبَةً ۚ كَذٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الآياتِ لَعَلَّكُم تَعقِلونَ
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
इस बात में न तो अंधे आदमी के लिए मज़ाएक़ा है और न लँगड़ें आदमी पर कुछ इल्ज़ाम है- और न बीमार पर कोई गुनाह है और न ख़ुद तुम लोगो पर कि अपने घरों से खाना खाओ या अपने बाप दादा नाना बग़ैरह के घरों से या अपनी माँ दादी नानी वगैरह के घरों से या अपने भाइयों के घरों से या अपनी बहनों के घरों से या अपने चचाओं के घरों से या अपनी फूफ़ियों के घरों से या अपने मामूओं के घरों से या अपनी खालाओं के घरों से या उस घर से जिसकी कुन्जियाँ तुम्हारे हाथ में है या अपने दोस्तों (के घरों) से इस में भी तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं कि सब के सब मिलकर खाओ या अलग अलग फिर जब तुम घर वालों में जाने लगो (और वहाँ किसी का न पाओ) तो ख़ुद अपने ही ऊपर सलाम कर लिया करो जो ख़ुदा की तरफ से एक मुबारक पाक व पाकीज़ा तोहफा है- ख़ुदा यूँ (अपने) एहकाम तुमसे साफ साफ बयान करता है ताकि तुम समझो