يا أَيُّهَا الَّذينَ آمَنوا لِيَستَأذِنكُمُ الَّذينَ مَلَكَت أَيمانُكُم وَالَّذينَ لَم يَبلُغُوا الحُلُمَ مِنكُم ثَلاثَ مَرّاتٍ ۚ مِن قَبلِ صَلاةِ الفَجرِ وَحينَ تَضَعونَ ثِيابَكُم مِنَ الظَّهيرَةِ وَمِن بَعدِ صَلاةِ العِشاءِ ۚ ثَلاثُ عَوراتٍ لَكُم ۚ لَيسَ عَلَيكُم وَلا عَلَيهِم جُناحٌ بَعدَهُنَّ ۚ طَوّافونَ عَلَيكُم بَعضُكُم عَلىٰ بَعضٍ ۚ كَذٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الآياتِ ۗ وَاللَّهُ عَليمٌ حَكيمٌ
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
ऐ ईमानदारों तुम्हारी लौन्डी ग़ुलाम और वह लड़के जो अभी तक बुलूग़ की हद तक नहीं पहुँचे हैं उनको भी चाहिए कि (दिन रात में) तीन मरतबा (तुम्हारे पास आने की) तुमसे इजाज़त ले लिया करें तब आएँ (एक) नमाज़ सुबह से पहले और (दूसरे) जब तुम (गर्मी से) दोपहर को (सोने के लिए मामूलन) कपड़े उतार दिया करते हो (तीसरी) नमाजे इशा के बाद (ये) तीन (वक्त) तुम्हारे परदे के हैं इन अवक़ात के अलावा (बे अज़न आने मे) न तुम पर कोई इल्ज़ाम है-न उन पर (क्योंकि) उन अवक़ात के अलावा (ब ज़रुरत या बे ज़रुरत) लोग एक दूसरे के पास चक्कर लगाया करते हैं- यँ ख़ुदा (अपने) एहकाम तुम से साफ साफ बयान करता है और ख़ुदा तो बड़ा वाकिफ़कार हकीम है