77حَتّىٰ إِذا فَتَحنا عَلَيهِم بابًا ذا عَذابٍ شَديدٍ إِذا هُم فيهِ مُبلِسونَफ़ारूक़ ख़ान & अहमदयहाँ तक कि जब हम उनपर कठोर यातना का द्वार खोल दें तो क्या देखेंगे कि वे उसमें निराश होकर रह गए है