45فَكَأَيِّن مِن قَريَةٍ أَهلَكناها وَهِيَ ظالِمَةٌ فَهِيَ خاوِيَةٌ عَلىٰ عُروشِها وَبِئرٍ مُعَطَّلَةٍ وَقَصرٍ مَشيدٍफ़ारूक़ ख़ान & अहमदकितनी ही बस्तियाँ है जिन्हें हमने विनष्ट कर दिया इस दशा में कि वे ज़ालिम थी, तो वे अपनी छतों के बल गिरी पड़ी है। और कितने ही परित्यक्त (उजाड़) कुएँ पड़े है और कितने ही पक्के महल भी!