104يَومَ نَطوِي السَّماءَ كَطَيِّ السِّجِلِّ لِلكُتُبِ ۚ كَما بَدَأنا أَوَّلَ خَلقٍ نُعيدُهُ ۚ وَعدًا عَلَينا ۚ إِنّا كُنّا فاعِلينَफ़ारूक़ ख़ान & अहमदजिस दिन हम आकाश को लपेट लेंगे, जैसे पंजी में पन्ने लपेटे जाते हैं, जिस प्रकाऱ पहले हमने सृष्टि का आरम्भ किया था उसी प्रकार हम उसकी पुनरावृत्ति करेंगे। यह हमारे ज़िम्मे एक वादा है। निश्चय ही हमें यह करना है