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Sura 2
Aya 285
285
آمَنَ الرَّسولُ بِما أُنزِلَ إِلَيهِ مِن رَبِّهِ وَالمُؤمِنونَ ۚ كُلٌّ آمَنَ بِاللَّهِ وَمَلائِكَتِهِ وَكُتُبِهِ وَرُسُلِهِ لا نُفَرِّقُ بَينَ أَحَدٍ مِن رُسُلِهِ ۚ وَقالوا سَمِعنا وَأَطَعنا ۖ غُفرانَكَ رَبَّنا وَإِلَيكَ المَصيرُ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

रसूल उसपर, जो कुछ उसके रब की ओर से उसकी ओर उतरा, ईमान लाया और ईमानवाले भी, प्रत्येक, अल्लाह पर, उसके फ़रिश्तों पर, उसकी किताबों पर और उसके रसूलों पर ईमान लाया। (और उनका कहना यह है,) "हम उसके रसूलों में से किसी को दूसरे रसूलों से अलग नहीं करते।" और उनका कहना है, "हमने सुना और आज्ञाकारी हुए। हमारे रब! हम तेरी क्षमा के इच्छुक है और तेरी ही ओर लौटना है।"