31أُولٰئِكَ لَهُم جَنّاتُ عَدنٍ تَجري مِن تَحتِهِمُ الأَنهارُ يُحَلَّونَ فيها مِن أَساوِرَ مِن ذَهَبٍ وَيَلبَسونَ ثِيابًا خُضرًا مِن سُندُسٍ وَإِستَبرَقٍ مُتَّكِئينَ فيها عَلَى الأَرائِكِ ۚ نِعمَ الثَّوابُ وَحَسُنَت مُرتَفَقًاफ़ारूक़ ख़ान & अहमदऐसे ही लोगों के लिए सदाबहार बाग़ है। उनके नीचे नहरें बह रही होंगी। वहाँ उन्हें सोने के कंगन पहनाए जाएँगे और वे हरे पतले और गाढ़े रेशमी कपड़े पहनेंगे और ऊँचे तख़्तों पर तकिया लगाए होंगे। क्या ही अच्छा बदला है और क्या ही अच्छा विश्रामस्थल!