67وَإِذا مَسَّكُمُ الضُّرُّ فِي البَحرِ ضَلَّ مَن تَدعونَ إِلّا إِيّاهُ ۖ فَلَمّا نَجّاكُم إِلَى البَرِّ أَعرَضتُم ۚ وَكانَ الإِنسانُ كَفورًاफ़ारूक़ ख़ान & नदवीऔर जब समन्दर में कभी तुम को कोई तकलीफ पहुँचे तो जिनकी तुम इबादत किया करते थे ग़ायब हो गए मगर बस वही (एक ख़ुदा याद रहता है) उस पर भी जब ख़ुदा ने तुम को छुटकारा देकर खुशकी तक पहुँचा दिया तो फिर तुम इससे मुँह मोड़ बैठें और इन्सान बड़ा ही नाशुक्रा है