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Sura 17
Aya 57
57
أُولٰئِكَ الَّذينَ يَدعونَ يَبتَغونَ إِلىٰ رَبِّهِمُ الوَسيلَةَ أَيُّهُم أَقرَبُ وَيَرجونَ رَحمَتَهُ وَيَخافونَ عَذابَهُ ۚ إِنَّ عَذابَ رَبِّكَ كانَ مَحذورًا

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

ये लोग जिनको मुशरेकीन (अपना ख़ुदा समझकर) इबादत करते हैं वह खुद अपने परवरदिगार की क़ुरबत के ज़रिए ढूँढते फिरते हैं कि (देखो) इनमें से कौन ज्यादा कुरबत रखता है और उसकी रहमत की उम्मीद रखते और उसके अज़ाब से डरते हैं इसमें शक़ नहीं कि तेरे परवरदिगार का अज़ाब डरने की चीज़ है