57أُولٰئِكَ الَّذينَ يَدعونَ يَبتَغونَ إِلىٰ رَبِّهِمُ الوَسيلَةَ أَيُّهُم أَقرَبُ وَيَرجونَ رَحمَتَهُ وَيَخافونَ عَذابَهُ ۚ إِنَّ عَذابَ رَبِّكَ كانَ مَحذورًاफ़ारूक़ ख़ान & अहमदजिनको ये लोग पुकारते है वे तो स्वयं अपने रब का सामीप्य ढूँढते है कि कौन उनमें से सबसे अधिक निकटता प्राप्त कर ले। और वे उसकी दयालुता की आशा रखते है और उसकी यातना से डरते रहते है। तुम्हारे रब की यातना तो है ही डरने की चीज़!