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Sura 16
Aya 75
75
۞ ضَرَبَ اللَّهُ مَثَلًا عَبدًا مَملوكًا لا يَقدِرُ عَلىٰ شَيءٍ وَمَن رَزَقناهُ مِنّا رِزقًا حَسَنًا فَهُوَ يُنفِقُ مِنهُ سِرًّا وَجَهرًا ۖ هَل يَستَوونَ ۚ الحَمدُ لِلَّهِ ۚ بَل أَكثَرُهُم لا يَعلَمونَ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

एक मसल ख़ुदा ने बयान फरमाई कि एक ग़ुलाम है जो दूसरे के कब्जे में है (और) कुछ भी एख्तियार नहीं रखता और एक शख़्श वह है कि हमने उसे अपनी बारगाह से अच्छी (खासी) रोज़ी दे रखी है तो वह उसमें से छिपा के दिखा के (ग़रज़ हर तरह ख़ुदा की राह में) ख़र्च करता है क्या ये दोनो बराबर हो सकते हैं (हरगिज़ नहीं) अल्हमदोलिल्लाह (कि वह भी उसके मुक़र्रर हैं) मगर उनके बहुतेरे (इतना भी) नहीं जानते