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Sura 12
Aya 76
76
فَبَدَأَ بِأَوعِيَتِهِم قَبلَ وِعاءِ أَخيهِ ثُمَّ استَخرَجَها مِن وِعاءِ أَخيهِ ۚ كَذٰلِكَ كِدنا لِيوسُفَ ۖ ما كانَ لِيَأخُذَ أَخاهُ في دينِ المَلِكِ إِلّا أَن يَشاءَ اللَّهُ ۚ نَرفَعُ دَرَجاتٍ مَن نَشاءُ ۗ وَفَوقَ كُلِّ ذي عِلمٍ عَليمٌ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

हम लोग तो (अपने यहाँ) ज़ालिमों (चोरों) को इसी तरह सज़ा दिया करते हैं ग़रज़ यूसुफ ने अपने भाई का थैला खोलने ने से क़ब्ल दूसरे भाइयों के थैलों से (तलाशी) शुरू की उसके बाद (आख़िर में) उस प्याले को यूसुफ ने अपने भाई के थैले से बरामद किया यूसुफ को भाई के रोकने की हमने यू तदबीर बताइ वरना (बादशाह मिस्र) के क़ानून के मुवाफिक़ अपने भाई को रोक नहीं सकते थे मगर हाँ जब ख़ुदा चाहे हम जिसे चाहते हैं उसके दर्जे बुलन्द कर देते हैं और (दुनिया में) हर साहबे इल्म से बढ़कर एक और आलिम है