105وَكَأَيِّن مِن آيَةٍ فِي السَّماواتِ وَالأَرضِ يَمُرّونَ عَلَيها وَهُم عَنها مُعرِضونَफ़ारूक़ ख़ान & अहमदआकाशों और धरती में कितनी ही निशानियाँ हैं, जिनपर से वे इस तरह गुज़र जाते है कि उनकी ओर वे ध्यान ही नहीं देते