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Sura 10
Aya 15
15
وَإِذا تُتلىٰ عَلَيهِم آياتُنا بَيِّناتٍ ۙ قالَ الَّذينَ لا يَرجونَ لِقاءَنَا ائتِ بِقُرآنٍ غَيرِ هٰذا أَو بَدِّلهُ ۚ قُل ما يَكونُ لي أَن أُبَدِّلَهُ مِن تِلقاءِ نَفسي ۖ إِن أَتَّبِعُ إِلّا ما يوحىٰ إِلَيَّ ۖ إِنّي أَخافُ إِن عَصَيتُ رَبّي عَذابَ يَومٍ عَظيمٍ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और जब उनके सामने हमारी खुली हुई आयतें पढ़ी जाती है तो वे लोग, जो हमसे मिलने की आशा नहीं रखते, कहते है, "इसके सिवा कोई और क़ुरआन ले आओ या इसमें कुछ परिवर्तन करो।" कह दो, "मुझसे यह नहीं हो सकता कि मैं अपनी ओर से इसमें कोई परिवर्तन करूँ। मैं तो बस उसका अनुपालन करता हूँ, जो प्रकाशना मेरी ओर अवतरित की जाती है। यदि मैं अपने प्रभु की अवज्ञा करँस तो इसमें मुझे एक बड़े दिन की यातना का भय है।"