35وَما كانَ صَلاتُهُم عِندَ البَيتِ إِلّا مُكاءً وَتَصدِيَةً ۚ فَذوقُوا العَذابَ بِما كُنتُم تَكفُرونَफ़ारूक़ ख़ान & अहमदउनकी नमाज़़ इस घर (काबा) के पास सीटियाँ बजाने और तालियाँ पीटने के अलावा कुछ भी नहीं होती। तो अब यातना का मज़ा चखो, उस इनकार के बदले में जो तुम करते रहे हो