52بَل يُريدُ كُلُّ امرِئٍ مِنهُم أَن يُؤتىٰ صُحُفًا مُنَشَّرَةًफ़ारूक़ ख़ान & अहमदनहीं, बल्कि उनमें से प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसे खुली किताबें दी जाएँ